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Wednesday, December 26, 2012

हम सुरक्षित हें

हम सुरक्षित हें 


शहर में हो रहे बलात्कार पर हम सुरक्षित हें 
रोज  हो रहे कत्लेआम पर हम सुरक्षित हें
गुंडों की बड रही आबादी पर हम सुरक्षित हें
पुलिस बरसा रही  लाठी पर हम सुरक्षित हें
भ्रस्टाचार का हे बोल  बाला  पर हम सुरक्षित हें 
पडोसी मूलक ने आतंकवादी हमला कर डाला  पर हम सुरक्षित हें 
मेहेंगाई ने सब रिकॉर्ड तोड़ डाले पर हम सुरक्षित हें 
डेंगू मलेरिया स्वीन फ्लू ने अपने जाल डाले  पर हम सुरक्षित हें 
डर तो हम को भी बहुत लगता है पर मन को ये कहकर भह्लाते हें 
डर मत मन अभी हम सुरक्षित हें 



पर  कब तक ?   


Tuesday, August 28, 2012

पाखरू

                                                               

पाखरू जन्माला येतात 
आणि मनात घर करतात 
ते कधी रडतात 
तर कधी हसतात 
ते कधी रुसतात 
तर कधी खुश असतात 
ते कधी खेळतात 
तर कधी भांडतात 
आवडती वस्तू साठी 
हट धरून बसतात 
आपले न कळत 
ते मोठे होत असतात 
एक दिवस ते उडून जातात 
आपल घर सोडून जातात 
मनातला घर तोडून जातात 
आपण वाट पहात असतो 
 त्यांच्या आठवणीत जगत असतो 

पाखरू जन्माला येतात 
आणि मनात घर करतात 

Monday, May 7, 2012

मुझे बारिश बनना है

मुझे बारिश बनना है
हाँ वो बारिश जो  बादल में रहती है
वो बारिश जो बूंदों से बरसती है
वो बारिश जो बिजली सी चमकती है
वो बारिश जो जोरो से गरजती है

मुझे बारिश बनना है 
वो बारिश जो पहाड़ो में झरना बन जाती है
वो बारिश जो मिटी में सोंधी खुशबू लाती  है
वो बारिश जो खेतो को सिचती है
वो बारिश जो कुंओ  तालाबों में भरजाती  है
बो बारिश जो पेड़ो की जड़ो में समां जाती  है


मुझे बारिश बनना है 
वो बारिश जो कोमल है
वो बारिश जो शीतल है
वो बारिश जो मन को बीघो देती है
मुझे बारिश बनना है 






मनातली गोष्ट

                                                                 मनातली गोष्ट

आपल्याला काहीतरी सांगायचं असते
तू छान  दिसते
तू  छान  हस्ते
तू माला आवडते
पण ते सांगण्या अधिच ती आपल्या कडे बघते
आपण बघतच राहतो आणि ती निघून जाते
आपल्याला काहीतरी सांगायचं असते


Saturday, April 7, 2012

मरीज

                                                          मरीज

मरीज बन कर मेने ये जाना
ये जग है कितना सयाना
तराह तराह के सुझाव  ये लाता
परेज के नुस्के बतलाता
कोई पूजा पाट तो
कोई चमत्कार बतलाता
पास के मरीजो को देखकर जी और घबराता
इस्ट्रेचर  पर जाते हुए
उप्पर से गुजरती लाइट को देख पसीना आता
तनाव और परेशानी से भरे
घरवालो के चहरे देख घबराहट का पारा और बढजाता
मरीज बन कर मेने ये जाना
ये जग है कितना सयाना

डॉक्टर भगवन  बन जाते
नर्स दासी जो सुबह पांच बजे उठाती
मिलने वाले रात देर तक मिलने आते
अब केसा लग रहा है ये पुछ कर चिढाते
पट्टे वाले कपडे में मरीज कम केदी जायदा लगते
मरीज बन कर मेने ये जाना
ये जग है कितना सयाना


सब ठीक होते हुए भी
खुद को समझाने में दो तिन दिन लग जाते
लोग फिर भी अपने राय ठूस जाते
अपना ध्यान रखना ये केहकर चल देतें
मन में शक का बिज बो देतें
मरीज बन कर मेने ये जाना
ये जग है कितना सयाना